महामहिम राष्ट्रपति जींच्या अभिभाषणाच्या धन्यवाद प्रस्तावावरील
शिवसेना खासदार अरविंद सावंत यांचे भाषण

आदरणीय अध्यक्ष महोदय,

महामहिम राष्ट्रपति महोदय जी के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर मुझे मेरे विचार प्रस्तुत करने की अनुमति दी, इसके लिए आपका धन्यवाद!

राष्ट्रपति जी जब सदन को सम्बोधित कर रहे थे, उस समय किसानों का आन्दोलन चल रहा था| उनके विचार और मार्गदर्शन से यह आन्दोलन कैसे समाप्त होगा, यह सुनने को हम तरस रहे थे| मुझे खेद हैं की माननीय राष्ट्रपति जी ने 26 जनवरी की घटना का जिक्र किया, हम भी उससे सहमत हैं, लेकिन यह कैसे भूल सकते हैं कि यही किसान 50 दिन से शांतिपूर्वक आन्दोलन कर रहे थे| वे कौन हैं, जिन्होंने लालकिले पर हमला किया, हम उसकी निंदा करते हैं| लेकिन उस को नजर रख के, किसानों को आतंकवादी, देशद्रोही, खलिस्तानी कहना निंदनीय हैं| वे हमारे अन्नदाता हैं न की आतंकवादी| सबसे ज्यादा दु:ख इस बात का हैं की इस आन्दोलन में 200 किसानों की मृत्यु हुई, लेकिन राष्ट्रपति जी के अभिभाषण में उसका कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया| मैं उन किसानों की मृत्यु के लिए सरकार को जिम्मेदार मानता हूं| ये मृत्यु नहीं हत्यायें हैं| अभी भी समय नही गया हैं| पूर्व प्रधानमंत्री आदरणीय श्री. अटल बिहारी वाजपेयी जी कहते थे, “बड़े मन से कोई छोटा नही होता|” आप कहते हैं कि यह आन्दोलन एक कॉल पर समाप्त होगा, अध्यक्ष महोदय, यह बात आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने कही| उस को भी एक हफ्ता हो गया लेकिन आज तक एक कॉल नही हुआ| प्रधानमंत्री जी, आप देश के मुखिया हैं, आप बडा दिल करके इन किसानों को बुलाकर बात करें| मुझे विश्वास हैं कि जिस दिन आप किसानों से बात करेंगे, उस दिन इसका निराकरण होगा|

एक जमाना था, एक नागरिक की किसी कारणवश मृत्यु होती हैं जिसमें सरकार दूर से क्यू न हो, जिम्मेदार हैं, हमने देखा हैं मंत्रियों ने इस्तीफा दिया हैं| सांसदों ने सदन नही चलने दिया| यहां तो तकरीबन 200 किसानों की मृत्यु हुई फिर भी सरकार ने आज तक कोई दु:ख, करूणा व्यक्त नही कियी हैं| सिर्फ राजनीतिक बयान दिये जा रहे हैं| क्या हम संवेदनाहीन हुए हैं?

इन्ही किसानों के बारे में आदरणीय राष्ट्रपति जी आत्मनिर्भरता की बात करते हैं तो ये उनकी संभावना लगती है| एक तरफ आत्मनिर्भरता की बात दूसरी तरफ किसानों पर अन्याय हो| हम जानते हैं कि यह भाषण सरकार ही देती है और राष्ट्रपति जी पढ़ते हैं| उनके मन की बात यदि होती तो मुझे नहीं लगता कि वे इस विषय के बारे में चिंता व्यक्त व्यक्त करते हैं लेकिन घर की समस्या के पास दुर्लक्ष करते हैं| उसके बारे यदि किसी परदेशी व्यक्ति ने कुछ कहा तो हमें बुरा लगता हैं|

आज पूरे विश्व में हमारी आलोचना हो रही हैं| उसका जवाब देने के लिए हमने अपने यहां सेलिब्रिटी की एक टीम खड़ी कर दी, उसमें भी हम पराजित हुए क्यों की यह उनके दिल की बात नहीं थी| उन्हों ने किसी का लिखित ट्विट किया, उससे वह सभी आज हास्यास्पद नजर आ रहे हैं|

यह कैसी आत्मनिर्भरता, यह तो आत्मवंचना हैं|

जब किसान का घर आत्मनिर्भरता से संपन्न, समृद्ध होगा तो गांव सम्पन्न होगा| आप किसान का सम्मान दो हजार रुपये देकर करना चाहते हैं, यह मजाक लगता हैं| इससे कोई आत्मनिर्भर नहीं होगा| 80 प्रतिशत किसान हमारे दो हैक्टेर से कम जमीन के मालकाना हकदार हैं| हम जो कानून ला रहे हैं उसमें ये गरीब किसान उत्पादन क्या करें, कहां बेचें, कैसे उत्पन्न दुगना होगा? यह शंकाए उनके मन में आज भी हैं| आप एम. एस. पी. रहेगा य बार बार कहते हो तो कानून में इस शब्द का प्रावधान क्यों नही करते?

हम पहले भी यह मांग की थी और आज भी कर रहे हैं| महोदय, हमने खुली अर्थनीति अपनाई हैं, उसके कारण कॉर्पोरेट की मोनोपॉली आये गी, यह अनुभव टेलिकॉम की सेवा में किया हैं| कॉर्पोरेट टेलीकॉम वालों ने शुरू में व्हॉइस कॉल मुफ्त में दिया, और एम. टी. एन. एल., बी. एस. एन. एल. के ग्राहकों को आकर्षित किया और जैसे ही बी. एस. एन. एल. / एम. टी. एन. एल. के ग्राहक टूट कर वह घाटे में जाते देखा तो व्हाइसकॉल का पैसा लेना शुरू किया यही डर, किसानों को एम. एस. पी. शब्द का कानून में अंतर्भाव न होने के कारण है| देर हो रही हैं, तुरन्त दुरुस्त करें यह प्रार्थना हैं|

अध्यक्ष महोदय, आदरणीय महामहिम राष्ट्रपति जी ने पानी को सम्पत्ति कहा हैं, हम स्वागत करते हैं | हमारे महाराष्ट्र के आदरणीय मुख्यमंत्री श्री. उद्धव ठाकरे जी ने कहा कि पानी को राष्ट्रीय सम्पत्ति होगी तो पानी के झगड़े राज्यों-राज्यों में जो द्वेष की भावना निर्माण कर रहे हैं वह खत्म होकर केंद्र सरकार एक न्यायिक व्यवस्था बनाकर न्याय प्रदान कर सकती हैं|

माननीय महामहिम राष्ट्रपति जी ने इंटरनेट, डिजिटल की बात की, मुझे याद हैं इसी सरकार ने 2014 में ऑप्टिकल फ़ाइबर के लिए रू. 30,000/- करोड का प्रावधान किया था| आज हमारी एमटीएनएल / बीएसएनएल की सेवायें पहले से गांव-गांव तक पहुँची हैं, उसे काम देने की बजाय कॉर्पोरेट को दिया गया इससे न तो काम ठीक हुआ न बीएसएनएल की आर्थिक समस्या ठीक हुई| यही सब काम बीएसएनएल / एमटीएनएल को देते तो कम वक्त में यह काम पूरा होता और अच्छा भी होता और दोनों कंपनियों को आर्थिक सहाय मिलता| कोरोना के समय हमने यह अनुभव किया हैं की इंटरनेट सेवायें, ब्रॉड बैन्ड की सेवाएं गांव-गाव में बंद पड़ी थी, स्कूल के बच्चे इस कारण “घर में बैठे शिक्षा” अभियान से वंचित रहे| इस सत्य को स्वीकार करो| एमटीएनएल / बीएसएनएल को सक्षम करने के कदम उठाये, इसका कोई जिक्र इस भाषण में नहीं हैं|

कोरोना के समय में 30 और 40 प्रतिशत एमएसएमई उद्योग बंद पड़े, कम्पनियां बंद हुई लाखों लोग बेरोजगार हुए| सरकार के इकॉनॉमिक सर्वे में देखिये कितने लोग बेरोजगार हुए, लेकिन, सरकार ने इन बेरोजगारों के लिए क्या कदम उठाये, इसका राष्ट्रपति के अभिभाषण मेम जिक्र नहीं हैं, उल्टा जहां रोजगार थे ऐसे पब्लिक सेक्टर को बेचने की सरकार ने अनुमति दी| भारत पैट्रोलियम बेचने की बात हुई, हिन्दुस्तान पैट्रोलियम, ओ. एन. जी. सी. में क्यों समाई जा रही है? क्यों मुनाफा करने वाली कम्पनियां बेची जा रही है? इसकी हम निंदा करते हैं और चिंता व्यक्त करते हैं| यही सारी कम्पनियां थी| जिससे नौकरियां मिलती थी| मैं ने 2014 में इसी महामहिम राष्ट्रपति जी के भाषण पर जो अभिनंदन प्रस्ताव सदन के चर्चा में आया था उस वक्त सार्वजनिक उद्यमों को सुरक्षित और सक्षम करो| लेकिन आज आप उन्हें बेच रहे हो| महोदय, बेचना आसान हैं, बचाना मुश्किल नहीं हैं, पर कुशलता हैं|

एक तरफ आप कहते हैं कि आगे चल कर तृतीय / चतुर्थ श्रेणी की नौकर भर्ती के लिए लिखित परीक्षा नहीं होगी और न होगी मुलाकात| यह व्यवस्था खत्म कर दी हैं, लेकिन नौकरियां कहां हैं और जहां हैं वहां भी भूमिपुत्रों पर अन्याय हो रहा हैं| हाल ही में सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने कहा कि भूमिपुत्रों को नौकरियों में प्राथमिकता देंगे| उसमें कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि राज्य सहभागी थे और जब महाराष्ट्र की बात आती हैं और यही मांग महाराष्ट्र करता हैं तो उसे संकुचित कहा जाता हैं| वंदनीय शिवसेनाप्रमुख श्री बालासाहेब ठाकरे जी कि यही मांग शिवसेना के निर्माण के समय से करते आये थे| आज भी महाराष्ट्र में भूमिपुत्रों की अनदेखी हो रही हैं| हाल ही में इन्कम टैक्स, मिन्ट में सारे के सारे कर्मचारी महाराष्ट्र से बाहर के भर्ती किये गये| क्या यह उचित या न्यायिक हैं? मिन्ट में तो टर्नर फिटर की 8 जगह की भर्ती थी, उसमें ना कर्मचारियों के बच्चों को ना अन्य महाराष्ट्र के किसी व्यक्ति को भर्ती मे लिया गया, ये तो सीधा ही भ्रष्टाचार हैं, इसके लिए मिन्ट के अधिकारी पर कारवाई होनी चाहिए|

स्टाफ सिलेक्शन से भर्ती भी राज्य के अंतर्गत होनी चाहिए| अपने मजदूरों, कामगारों, कर्मचारीयों के लिए तीन नये कानून लाये| इसमें दुर्भाग्य पूर्ण बात ऐसी हैं की उनके नौकरी की सुरक्षा ही हटा दी गई| उनका जीवन न तनख्वाह की बढ़ौती न पद की बढ़ोत्तरी के साथ व्यतीत होगा| कॉन्ट्रॅक्ट पर नौकरी करेंगे और रिटायर होने पर रु. 01000/- पेंशन देंगे| क्या इसमें वह अपना जीवन व्यतीत कर सकता हैं? हम पश्चिमी विकसित राष्ट्रोकं का अंधानुकरण कर रहें हैं और वह भी आधा अधूरा| वहां तो उन्हें इतनी पेंशन मिलती हैं कि उसमें वह पैसे बचा पाते हैं| उसके साथ जिंदगी भर स्वास्थ्य की मुफ्त सेवा मिलती हैं, क्या सरकार यह सुविधायें हमारे देश में देती हैं? क्यूं हम उन्हें निजी कंपनियों के नौकर नही बल्कि गुलाम बना रहे हैं|

आज जेट एअर लाइन्स में काम करने वाले कर्मचारी / मजदूरों का क्या हो रहा हैं| एअर इंडिया में काम करने वाले कर्मचारी, और मजदूरों की हालत बुरी हैं| तनख्वाह भी समय पर नहीं मिल रही हैं| आप जो यह निजीकरण का कदम उठा रहे हो वही आपके लिए एक दिन प्रश्न खड़ा करेगा| भूख, रोटी की लडाई का सामना करना आपके लिए कठिन होगा|

आदरणीय महामहिम राष्ट्रपति जी के भाषण में कश्मीर में धार 370 हटाने का संदर्भ आया हैं| हमें गर्व हुआ क्योंकि वंदनीय बालासाहेब ठाकरे जी इस मांग को लेकर डटकर खड़े थे| लेकिन आज तक कितने कश्मीरी पंडित कश्मीर आकर अपने घर बसा पाये?

आज हमारी न्यायपालिका कटघरे में खड़ी हैं, सर्वोच्च न्यायालय के दरवाजे रविवार को कुछ खास लोगों के लिए भी खोल दिये जाते हैं| लेकिन हजारों लोग बरसों से न्याय के इंतजार में बैठे हैं| उन्हें न्याय देने के लिए समय नही| जनतंत्र के चार स्तम्भ हैं और यह संविधान के नींव पर खड़े हैं| इसी संविधान की रक्षा की अपेक्षा जनता करती हैं| माननीय राज्यपाल तो महामहिम राष्ट्रपति के कार्यकक्षा में आते हैं| क्या माननीय राज्यपाल संविधान के मार्गदर्शन पर चल रहे हैं| अगर हैं, तो महाराष्ट्र की राज्य सरकार ने विधान परिषद के 12 नामित सदस्यों की सूची माननीय राज्यपाल जी को सादर करने के बाद आज तक क्यूं घोषित नहीं हुई?

क्या यह संविधान का अपमान नहीं हैं?

वही बात महाराष्ट्र कर्नाटक सीमा के संबंध में, संविधान से ही भाषावार राज्य / प्रांत की रचना हुई| महाराष्ट्र राज्य निर्माण के समय बेलगांव, कारवार, निपाणी, भालकी, बिदर जिसमें सबसे ज्यादा मराठी भाषिक स्थित हैं, यह भू प्रदेश कर्नाटक राज्य में समाविष्ट किया गया| आज पिछले 60 वर्ष से वहां की मराठी जनता न्याय के लिए शांतिपूर्वक, कानूनन लडाई लड रहे हैं| उनको न्याय देने में केन्द्र सरकार, न्यायपालिका आज तक असमर्थ हो रही हैं| दरम्यान कर्नाटक सरकार ने बेलगांव का नाम बेलगावी किया| यह मसला सर्वोच्च न्यायालय में प्रलंबित हैं फिर भी शहर का नाम बदल दिया गया| इतना ही नहीं उसी बेलगांव को उप राजधानी बनाकर वहां विधानसभा खड़ी की गई हैं| क्या यह संविधान का अपमान नहीं हैं? आज भी वहां के मराठी भाषिकों पर अत्याचार शुरू हैं| इसलिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री आदरणीय श्री. उद्धवजी ठाकरे साहब ने सर्वोच्च न्यायालय और केन्द्र सरकार जब तक अपना न्याय घोषित नहीं करते हैं तब तक इस भू प्रदेश को केन्द्र शासित किया जाये, ऐसी जायज़ मांग रखी हैं| यह दुर्भाग्यपूर्ण हैं की राष्ट्रपति के अभिभाषण में इन विषयों का उल्लेख नही हैं| मैं इस पर खेद प्रकट करता हूं|

अपने देश में बहुत सारी जातियां हैं, विविध धर्म हैं, लेकिन विविधता में एकता ही इस देश का सामर्थ्य रहा| इस देश में कोई वंचित, पिछड़ा न रहे इसलिए संविधान बनाते हुए भारतरत्न आदरणीय डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी ने शिक्षा, नौकरी में कुछ वर्षों के लिए ऐसे वर्गों के लिए आरक्षण रखा| लेकिन उन वर्षों में पिछड़ा वर्ग सामाजिक, शिक्षा, आर्थिक विकास में समानता की गति और स्थिति प्राप्त न कर सका इसलिए आज तक यह आरक्षण शुरू हैं| आज ओ. बी. सी. आदिवासी जैसी पिछड़ी जमातो को आरक्षण दिया गया हैं और यह आरक्षण 50 प्रतिशत की परिसीमा तक पहुंचा| फिर भी कुछ जातियां और आर्थिक समस्याओं के कारण कुछ समाज आज भी पिछड़ रहे हैं, इसलिए उनकी लडाई चल रही हैं| उत्तर भार में धनगढ़ और महाराष्ट्र में धनगर समाज हैं, लेकिन ‘ड’ और ‘र’ इस एक अक्षर का फर्क होने के कारण महाराष्ट्र का धनगर समाज अज भी आरक्षण और अन्य सुविधाओं से वंचित है| इसी तरह आज महाराष्ट्र में मराठा समाज आर्थिक विकास न होने के कारण पिछड़ा रहा हैं|

इसीलिए मराठा समाज का आंदोलन शुरू हैं| राज्य की सरकार उन्हें न्याय देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में आई हैं| न्यायालय ने केन्द्र को अपनी भूमिका विशद करने की मांग की हैं| एक तरफ आंदोलन शुरू हैं और वहां तमिलनाडु सरकार ने 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा पार करके 65 प्रतिशत तक आरक्षण दिया हैं| उसे न तो न्यायपालिका न केन्द्र सरकार रोकती हैं लेकिन वही न्याय महाराष्ट्र राज्य के साथ नही हो रहा हैं|

इसलिए हमारी मांग हैं की केन्द्र सरकार 70 प्रतिशत या उससे ज्यादा, जितना उचित समझें उतना आरक्षण बढ़ाये और जो पिछडे वर्ग और समाज आज भी वंचित हैं उनमें उस आरक्षण बंटवारा करने का अधिकार राज्य को प्रदान करे| ताकि जाति / जनजातियों की जानकारी हर राज्य को पूरी रहती है और जैसे धनगढ़ या धनगर जैसी समस्यायें खड़ी नहीं होंगी| आखिरी बार यह आरक्षण का मसला पूर्णतया खत्म करें और यह करते समय इसके पूर्व जो आरक्षण किसी जाति जमाति को दिये हैं, उस को किसी भी तरह का धक्का न लगे, इसकी भी सावधानी बरतनी होगी| यह संशोधन अपने संविधान में करना होगा| बिना संविधान के संशोधन यह नही होगा, यह भी आप ध्यान में रखें| इतनी बडी समस्या का उल्लेख भी माननीय राष्ट्रपति जी के भाषण में नही रहा|

अध्यक्ष महोदय, मैं ने अपने भाषण में जो जायज़ मुद्दे उठाये हैं, अपेक्षा करता हूं की, सरकार इस पर पूर्ण रूप से ध्यान देकर इन समस्याओं का निराकरण करे, ताकि अगली बार जब महामहिम राष्ट्रपति जी संसद में अभिभाषण करेंगे तो उनके धन्यवाद प्रस्ताव पर हमें उनका अभिनंदन करने का अवसर प्राप्त हो|

धन्यवाद|

अरविंद सावंत
शिवसेना